ऐतिहासिक रूप से बिलासपुर की स्थापना 1663 में राजा दीप चंद ने की थी। इसका पुराना नाम ‘कहलूर’ था, जो बाद में बदलकर ‘बिलासपुर’ हो गया। यह क्षेत्र सतलुज नदी के तट पर बसा हुआ था, लेकिन भाखड़ा बांध के निर्माण के कारण बनी गोविंद सागर झील पुरे बिलासपुर के इतिहास को आपने अंदर समेत लिया। बाद में बिलासपुर ऊपर की ओर बसाया गया। अब यह स्थान पर्यटन का मुख्य केंद्र बन चुका है। बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश का एक ऐसा अनमोल गहना है, जो प्राकृतिक सुंदरता, सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक महत्व का संगम प्रस्तुत करता है। यह स्थान उन यात्रियों के लिए अच्छा है, जो भीड़भाड़ से दूर एक शांत और सुकून भरी यात्रा की तलाश में हैं। हम यहाँ best top 10 स्थान की सूचि दे रहे है जो बिलासपुर के सबसे अच्छे टूरिस्ट स्पॉट है।

1.वेद व्यास गुफा, बिलासपुर(Ved Vyas Cave, Bilaspur)

परिचय-व्यास गुफा, जो न केवल अपने धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इतिहास और संस्कृति के अद्वितीय संगम का प्रतीक भी है। यह गुफा उस स्थान के रूप में जानी जाती है जहाँ महर्षि वेदव्यास ने महाभारत महाकाव्य की रचना की थी। आज भी यह गुफा श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए एक महत्वपूर्ण आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।
 क्यों जाये –व्यास गुफा की सबसे बड़ी विशेषता यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता है। हिमाचल प्रदेश के अन्य हिस्सों की तरह ही, यहाँ का वातावरण भी स्वच्छ और शुद्ध है। गुफा के चारों ओर हरियाली, पर्वत और नदियों का अद्भुत संयोजन इसे एक आदर्श पर्यटक स्थल बनाता है। गुफा के पास से व्यास नदी भी बहती है, जिससे इस स्थल की शोभा और बढ़ जाती है। यहाँ का मौसम भी अधिकांश समय ठंडा और सुखद रहता है, जो पर्यटकों के लिए एक आकर्षण का केंद्र है।
कब जाये -व्यास गुफा की यात्रा का सबसे उपयुक्त समय मार्च से जून और सितंबर से नवंबर के बीच का होता है। इस दौरान मौसम सुखद रहता है
कैसे जाये -व्यास गुफा हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थित है, जो समुद्र तल से लगभग 610 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। बिलासपुर शहर से यह गुफा लगभग 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ तक पहुँचने के लिए पर्यटक आसानी से सड़क मार्ग का उपयोग कर सकते हैं। बिलासपुर तक आने के लिए निकटतम हवाई अड्डा शिमला में स्थित है, जो यहाँ से लगभग 85 किलोमीटर की दूरी पर है। इसके अलावा, रेल और सड़क मार्ग द्वारा भी बिलासपुर पहुँचना आसान है।

2.शक्तिपीठ श्री नैना देवी मंदिर, बिलासपुर (Shaktipeeth Shri Naina Devi Temple, Bilaspur)

परिचय-हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थित, श्री नैना देवी मंदिर भारत के 51 शक्ति पीठों में से एक है। यह मंदिर मां नैना देवी को समर्पित है, जिन्हें देवी दुर्गा का एक रूप माना जाता है। कहा जाता है कि जब भगवान शिव की पत्नी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होने के बाद आत्मदाह कर लिया था, तब भगवान शिव उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करने लगे थे। इस घटना के बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 टुकड़ों में विभाजित कर दिया। जहां-जहां सती के शरीर के अंग गिरे, वहां-वहां शक्ति पीठ स्थापित हो गए। नैना देवी मंदिर उसी स्थान पर बना है, जहां सती की आंखें गिरी थीं। 
 क्यों जाये – मां नैना देवी शांति और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। भक्तजन यहां आकर अपने मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।मंदिर की वास्तुकला अद्भुत है। यहां का मुख्य गर्भगृह बहुत ही सुंदर और शांति प्रदान करने वाला है। मंदिर के अंदर मां नैना देवी की मूर्ति स्थापित है, जिसे बहुत ही सुंदर ढंग से सजाया गया है। मंदिर परिसर में अन्य देवी-देवताओं के भी छोटे मंदिर हैं। यहां से आप गोबिंद सागर झील और आसपास के पहाड़ों के अद्भुत दृश्यों का आनंद ले सकते हैं।
कब जाये -यहाँ कभी भी आया जा सकता है ,मंदिर में सालभर विभिन्न त्योहार और धार्मिक आयोजन होते रहते हैं। नवरात्रि का त्योहार यहां सबसे महत्वपूर्ण होता है। इस समय मंदिर को बहुत ही सुंदर ढंग से सजाया जाता है। इसके अलावा, हर साल अगस्त-सितंबर महीने में यहां एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है, जिसे ‘श्रावण अष्टमी मेला’ कहा जाता है। यह मेला लगभग आठ दिनों तक चलता है, और इस दौरान विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
कैसे जायेश्री नैना देवी मंदिर तक पहुंचने के लिए कई मार्ग उपलब्ध हैं। मंदिर तक पहुंचने के लिए सबसे निकटतम शहर चंडीगढ़ है, जो लगभग 100 किलोमीटर दूर है। चंडीगढ़ से बिलासपुर तक की यात्रा सड़क मार्ग से की जा सकती है। बिलासपुर से नैना देवी मंदिर की दूरी लगभग 20 किलोमीटर है।यदि आप हवाई मार्ग से यात्रा करना चाहते हैं, तो निकटतम हवाई अड्डा चंडीगढ़ है। वहां से आप टैक्सी या बस के माध्यम से नैना देवी मंदिर तक पहुंच सकते हैं। रेलमार्ग से यात्रा करने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन चंडीगढ़ या आनंदपुर साहिब है।मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढ़ियों की एक लंबी श्रृंखला चढ़नी पड़ती है। हालांकि, बुजुर्ग और विकलांग यात्रियों के लिए रोपवे की सुविधा भी उपलब्ध है, जो उन्हें सीधे मंदिर के पास ले जाती है। इसके आलावा टेक्सी से भी मंदिर तक पहुंच सकते है।

3.भाखड़ा बांध, बिलासपुर, (Bhakra Dam, Bilaspur)

परिचय-हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थित सतलुज नदी पर बना भाखड़ा बांध भारत का सबसे बड़ा और एशिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध है जो अपनी विशालता, इंजीनियरिंग की उत्कृष्टता और प्राकृतिक सुंदरता के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है।भाखड़ा बांध का निर्माण 1948 में शुरू हुआ और इसे 1963 में पूरा किया गया। बांध का मुख्य उद्देश्य जल विद्युत उत्पादन, सिंचाई, और बाढ़ नियंत्रण है। भाखड़ा बांध की ऊंचाई 226 मीटर है, जो इसे दुनिया के सबसे ऊंचे गुरुत्वाकर्षण बांधों में से एक बनाता है। यह बांध गोबिंद सागर झील के रूप में एक विशाल जलाशय का निर्माण करता है, जिसकी लंबाई लगभग 90 किलोमीटर है और जो भारत की सबसे बड़ी कृत्रिम झीलों में से एक है।
क्यों जाये – भाखड़ा  बांध इंजीनियरिंग का अद्भुत नमूना है, जो एक आश्चर्य प्रगट करता है। बांध के ऊपर से सतलुज नदी और गोबिंद सागर झील का अद्भुत दृश्य देखा जा सकता हैं।बांध परिसर में एक छोटा सा संग्रहालय भी है, जहां आप बांध के निर्माण के इतिहास, इसके महत्व और तकनीकी जानकारी को देख सकते हैं। इसके अलावा, बांध के पास स्थित गोबिंद सागर झील में बोटिंग और अन्य जलक्रीड़ाओं का आनंद लिया जा सकता है। झील के किनारे स्थित हरे-भरे पार्क और उद्यान भी पर्यटकों को बहुत आकर्षित करते हैं।भाखड़ा बांध के आसपास के क्षेत्र में सालभर विभिन्न आयोजन और उत्सव होते रहते हैं। विशेष रूप से गर्मियों के मौसम में यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम और स्थानीय मेले आयोजित किए जाते हैं। इन कार्यक्रमों के दौरान आप हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर और लोककला का आनंद ले सकते हैं।
कब जाये -भाखड़ा  बांध घूमने के लिए आप साल भर में कभी भी जा सकते है। यह सालो भर सुबह 8:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक खुला रहता है। हालांकि, बांध के अंदर जाने के लिए विशेष अनुमति की आवश्यकता होती है, जो कि भारतीय नागरिकों के लिए उपलब्ध होती है। विदेशी पर्यटकों को बांध परिसर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाती है, लेकिन वे गोबिंद सागर झील और इसके आसपास के क्षेत्रों का आनंद ले सकते हैं।
कैसे जायेभाखड़ा  बांध तक पहुंचने के लिए कई मार्ग उपलब्ध हैं। निकटतम बड़ा शहर चंडीगढ़ है, जो लगभग 116 किलोमीटर दूर है। चंडीगढ़ से आप सड़क मार्ग द्वारा बांध तक आसानी से पहुंच सकते हैं। बिलासपुर से बांध की दूरी लगभग 20 किलोमीटर है, और यहां तक पहुंचने के लिए टैक्सी या बस सेवाएं उपलब्ध हैं।हवाई मार्ग से यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए निकटतम हवाई अड्डा चंडीगढ़ है। रेलमार्ग से यात्रा करने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन चंडीगढ़ और नंगल डैम रेलवे स्टेशन है। नंगल डैम स्टेशन से बांध की दूरी केवल 13 किलोमीटर है, जिसे आप टैक्सी के माध्यम से तय कर सकते हैं।

4.गोविन्द सागर झील ,बिलासपुर (Govind Sagar Lake, Bilaspur)

परिचय-गोविंद सागर झील का नाम सिक्खों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी के नाम पर रखा गया है। इस झील का निर्माण 1963 में भाखड़ा नांगल परियोजना के अंतर्गत हुआ था। इस झील का विस्तार लगभग 170 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और इसकी गहराई भी बहुत अधिक है। यह झील भारतीय जल प्रबंधन और ऊर्जा उत्पादन में एक नए युग की शुरुआत की थी। यह झील न केवल अपनी प्राकृतिक छटा के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह धार्मिक, ऐतिहासिक, और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
क्यों जाये –गोविंद सागर झील अपने प्राकृतिक सौंदर्य और शांति के लिए प्रसिद्ध है। इसके चारों ओर फैले हरे-भरे पहाड़ और गहरी नीली जल मंत्रमुग्ध कर देते है। यहां पर सुबह और शाम के समय का दृश्य अद्वितीय होता है, जब सूर्य की किरणें पानी पर पड़ती हैं तो ऐसा लगता है जैसे पूरी झील सोने की तरह चमक रही हो।यहां पर बोटिंग, कयाकिंग, और वाटर स्कीइंग जैसी गतिविधियों का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा, मछली पकड़ने के शौकीनों के लिए भी यह स्थान बहुत ही आकर्षक है। झील के किनारे कैंपिंग का अनुभव भी किया जा सकता हैं।
यह स्थान हिन्दू व सिख धर्म के अनुयायियों के लिए एक पवित्र स्थल माना जाता है। झील के पास स्थित कई मंदिर ,गुरुद्वारे हैं।झील के किनारे कई अच्छे रिसॉर्ट्स और होमस्टे उपलब्ध हैं, जहां पर ठहरने की उत्तम व्यवस्था है। इसके अलावा, यहां के स्थानीय भोजन का स्वाद लेना भी एक विशेष अनुभव ले सकते है।
कब जाये -गोविंद सागर झील घूमने के लिए आप साल भर में कभी भी जा सकते है। यह सालो भर खुला रहता है। हालांकि, सुबह और शाम को यहाँ आना सुखद होता है।
कैसे जाये -गोविन्द सागर झील तक पहुंचने के लिए कई मार्ग उपलब्ध हैं। निकटतम बड़ा शहर चंडीगढ़ है, जो लगभग 116 किलोमीटर दूर है। चंडीगढ़ से आप सड़क मार्ग द्वारा झील तक आसानी से पहुंच सकते हैं। बिलासपुर से झील की दूरी लगभग 20 किलोमीटर है, और यहां तक पहुंचने के लिए टैक्सी या बस सेवाएं उपलब्ध हैं।हवाई मार्ग से यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए निकटतम हवाई अड्डा चंडीगढ़ है। रेलमार्ग से यात्रा करने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन चंडीगढ़ और नंगल डैम रेलवे स्टेशन है। नंगल डैम स्टेशन से झील की दूरी केवल 13 किलोमीटर है, जिसे आप टैक्सी के माध्यम से तय कर सकते हैं।

5.मार्कंडेय ऋषि मंदिर, बिलासपुर (Markandeya Rishi temple, Bilaspur)

परिचय-मार्कण्डेय ऋषि मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में हुआ था और यह ऋषि मार्कण्डेय के नाम पर बना हुआ है, जो हिंदू पौराणिक कथाओं में एक महान संत और तपस्वी के रूप में विख्यात हैं। मार्कण्डेय ऋषि की कथा महाभारत और पुराणों में प्रमुखता से वर्णित है। उनका जन्म भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा से हुआ था और उन्हें चिरंजीवी (अमृत) का आशीर्वाद प्राप्त था। साथ ही पूजे जाने का भी वरदान मिला था . शिवजी ने कहा कि, मार्कंडेय ऋषि की सदैव पूजा की जाएगी. इसलिए भगवान शिव के साथ ही मार्कंडेय ऋषि की भी पूजा की जाने लगी। ऐसा मानना है की चारो धाम की यात्रा करने के बाद यात्रा का पूर्ण लाभ यहाँ के दर्शन और स्नान ध्यान से मिलता है। यहाँ पर नि :संतान दम्पति भी संतान की मनोकामना ले कर आते है।
क्यों जाये – चारो धाम की यात्रा के बाद यात्रा समाप्ति और पूर्ण लाभ के लिए यह आया जाता है ,यह एक झरना है जो औषधि गुणों से भरपूर है। मार्कण्डेय ऋषि मंदिर की वास्तुकला बहुत ही सरल और प्राचीन है, जो इसकी पवित्रता को और अधिक बढ़ा देती है। मंदिर की दीवारें और स्तंभ पत्थरों से बने हुए हैं, जो इसकी प्राचीनता को दर्शाते हैं। मंदिर के गर्भगृह में मुख्य प्रतिमा भगवान शिव की है, जो शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। शिवलिंग के पास ही मार्कण्डेय ऋषि की मूर्ति भी स्थापित है। मंदिर परिसर के अंदर एक पवित्र कुंड भी है, जिसे स्थानीय लोग “मार्कण्डेय कुंड” के नाम से जानते हैं।
मंदिर का परिवेश बहुत ही शांत और प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है। यह मंदिर एक छोटे पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है, जो हरियाली और पेड़ों से घिरा हुआ है। मंदिर के आसपास की भूमि प्राकृतिक सुंदरता से समृद्ध है, जहां आप पक्षियों की चहचहाहट और प्राकृतिक ध्वनियों का आनंद ले सकते हैं। अगर आप प्रकृति प्रेमी हैं, तो यह स्थान आपको अद्वितीय अनुभव प्रदान करेगा।
कब जाये -ऐसे तो आप साल में कभी भी जा सकते है पर मंदिर दर्शन के लिए सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से मार्च के बीच का होता है। इस समय मौसम सुखद और ठंडा होता है, जिससे आपकी यात्रा और भी आरामदायक हो जाती है। गर्मियों के मौसम में यहां का तापमान काफी बढ़ जाता है, जिससे यात्रा थोड़ी कठिन हो सकती है। मानसून के दौरान यहां की प्राकृतिक सुंदरता और भी अधिक बढ़ जाती है, लेकिन इस समय यात्रा करने में सड़क मार्ग पर थोड़ा ध्यान रखना पड़ता है, क्योंकि बारिश के कारण रास्ते फिसलन भरे हो सकते हैं।
कैसे जाये -मार्कण्डेय ऋषि मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको बिलासपुर से लगभग 20 किलोमीटर की यात्रा करनी होगी। बिलासपुर एक प्रमुख शहर है और यहां से मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग सबसे उपयुक्त है। बिलासपुर से आपको स्थानीय परिवहन साधन जैसे कि टैक्सी, ऑटो-रिक्शा, या निजी वाहन के माध्यम से मंदिर तक पहुंचने में कोई कठिनाई नहीं होगी। निकटतम रेलवे स्टेशन बिलासपुर जंक्शन है, जहां से मंदिर तक यात्रा करने में लगभग 30 मिनट का समय लगता है।

6.लक्ष्मी नारायण मंदिर, बिलासपुर ( Laxmi Narayan Mandir, Bilaspur)

परिचय-लक्ष्मी नारायण मंदिर, हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थित, पवित्र धार्मिक स्थल है। इस मंदिर में रंगनाथ की मूर्ति है, जिसे बिलासपुर के पुराने शहर से लाया गया था। भाखड़ा बांध के निर्माण के बाद, पुराना मंदिर गोविंद सागर झील में डूब गया। इस मंदिर का निर्माण विष्णु भगवान के अवतार लक्ष्मी नारायण को समर्पित है। लक्ष्मी नारायण मंदिर, भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की संयुक्त पूजा का स्थल है, जहां उन्हें शक्ति और धन की देवी के रूप में पूजा जाता है।
क्यों जाये – भगवान विष्णु, जिन्हें सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में माना जाता है, इस मंदिर के मुख्य देवता हैं। उनके साथ देवी लक्ष्मी, जो धन, समृद्धि और सुख की देवी हैं, की भी पूजा की जाती है। लक्ष्मी नारायण मंदिर की वास्तुकला बहुत ही भव्य और आकर्षक है। यह मंदिर हिमाचली शैली में बना हुआ है, जिसमें लकड़ी और पत्थर का विशेष रूप से उपयोग किया गया है। मंदिर की संरचना में काठकोणी शैली की विशेषताएं देखी जा सकती हैं, जो हिमाचल प्रदेश की पारंपरिक वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर की दीवारें और स्तंभों पर बारीक नक्काशी की गई है, जो उस समय की कला और शिल्प कौशल को दर्शाती हैं।मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की मूर्तियां स्थापित हैं। ये मूर्तियां बहुत ही सुंदर और दिव्य हैं। मंदिर के बाहरी हिस्से में भी नक्काशीदार पत्थरों का प्रयोग किया गया है, जो मंदिर की सुंदरता को और भी बढ़ाते हैं।
कब जाये -यहाँ साल में कभी भी आ सकते है।मंदिर में सावन में विशेष पूजा अर्चना होता है।
कैसे जाये लक्ष्मी नारायण मंदिर तक पहुंचना काफी आसान है। यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थित है और यहां तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग सबसे उपयुक्त है। निकटतम हवाई अड्डा चंडीगढ़ है, जो लगभग 140 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चंडीगढ़ से बिलासपुर तक आप टैक्सी या बस के माध्यम से आसानी से पहुंच सकते हैं।अगर आप ट्रेन से यात्रा कर रहे हैं, तो निकटतम रेलवे स्टेशन ऊना है, जो बिलासपुर से लगभग 80 किलोमीटर दूर है। ऊना से बिलासपुर तक आप बस या टैक्सी के माध्यम से पहुंच सकते हैं। बिलासपुर से लक्ष्मी नारायण मंदिर की दूरी मात्र 10 किलोमीटर है, जिसे आप स्थानीय परिवहन साधनों से आसानी से तय कर सकते हैं।

7.कंदरौर पुल बिलासपुर (Kandrour Bridge Bilaspur)

परिचय-बहुत ही सुंदर और आकर्षक कंदरौर पुल राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-88 पर बिलासपुर से 8 किलोमीटर दूर है। यह सतलुज नदी पर बना है। इसका निर्माण अप्रैल, 1959 में शुरू हुआ था और 1965 में पूरा हुआ। पुल की लंबाई लगभग 280 मीटर है, चौड़ाई लगभग सात मीटर है और सबसे निचली नदी तल से इसकी ऊंचाई लगभग 80 मीटर है, जो इसे दुनिया के सबसे ऊंचे पुलों में से एक बनाता है। इसकी ऊंचाई के लिए इसे एशिया में पहला स्थान दिया गया है। इसने बिलासपुर, घुमारवीं और हमीरपुर जिले के बीच एक संपर्क प्रदान किया है, और यह एक अद्भुत इंजीनियरिंग उपलब्धि है। पुल को सहारा देने वाले खंभे खोखले हैं।
क्यों जाये – कंदरौर पुल एक कैंटिलीवर ब्रिज है, जिसे स्टील और कंक्रीट से बनाया गया है। इसकी ऊंचाई और लंबाई इसे एक चुनौतीपूर्ण परियोजना बनाती है, और इसका निर्माण उस समय की तकनीकी सीमाओं को पार करने के रूप में देखा जाता है। इसके आलावा पूल से प्राकृतिक नजारा लिया जा सकता है यह पर सेल्फी और फोटोज भी लिया जा सकता है।
कब जाये -वैसे तो यहाँ कभी भी आ सकते है लेकिन कंदरौर पुल की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय मार्च से जून और सितंबर से नवंबर के बीच का होता है। इस समय के दौरान मौसम सुहावना रहता है और आप यहां की प्राकृतिक सुंदरता का भरपूर आनंद ले सकते हैं।
कैसे जाये- कंदरौर ब्रिज की यात्रा के लिए साधन की कोई कमी नहीं है जो भी सदन NH -88 पर जायेगा वह इस पूल से ही होता हुआ जायेगा।

8.कोलडैम बांध, बिलासपुर (Koldam Dam, Bilaspur)

परिचय-कोलडैम बांध का निर्माण 2004 में शुरू हुआ और इसे 2015 में पूरी तरह से चालू कर दिया गया। यह बांध भारत के राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (NTPC) द्वारा बनाया गया था, और इसका मुख्य उद्देश्य सतलुज नदी के पानी से बिजली उत्पादन करना था। यह बांध 800 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता रखता है, जो हिमाचल प्रदेश और आस-पास के राज्यों के लिए महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत है। इसके अलावा, यह बांध जल संरक्षण और सिंचाई के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सतलुज नदी पर बना यह बांध, न केवल बिजली उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि एक पर्यटक आकर्षण के रूप में भी उभर रहा है।
क्यों जाये – कोलडैम बांध का शांत और प्राकृतिक माहौल मन को शांति और सुकून प्रदान करता है। कोलडैम बांध के आसपास का क्षेत्र प्राकृतिक सुंदरता से भरा हुआ है। हरे-भरे पहाड़, नीला आकाश, और विशाल जलाशय है। यहाँ का सूर्यास्त और सूर्योदय बहुत खूबसूरत होता है। बांध के विशाल जलाशय में नाव, पैडल बोट, मोटर बोट की सवारी की जा सकती है। यहाँ मछली पकड़ने के योजना के साथ भी आया जा सकता है।
फोटोग्राफी प्रेमियों के लिए कोलडैम बांध एक स्वर्ग से कम नहीं है।
कब जाये -यहाँ साल में कभी भी जाया जा सकता है लेकिन कोलडैम बांध का दौरा करने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच होता है। इस समय मौसम सुहावना होता है और तापमान भी अनुकूल रहता है, जिससे आप बांध और इसके आसपास के क्षेत्र का पूरी तरह से आनंद ले सकते हैं।
कैसे जाये- अगर आप हवाई यात्रा करना चाहते हैं, तो सबसे नजदीकी हवाई अड्डा चंडीगढ़ है, जो कोलडैम बांध से लगभग 110 किलोमीटर की दूरी पर है। चंडीगढ़ से आप टैक्सी या बस के माध्यम से आसानी से बिलासपुर पहुँच सकते हैं। चंडीगढ़ से बिलासपुर के लिए नियमित बस सेवाएँ उपलब्ध हैं।
अगर आप ट्रेन से यात्रा करना चाहते हैं, तो सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन चंडीगढ़ है। चंडीगढ़ से कोलडैम बांध तक पहुँचने के लिए आप टैक्सी या बस का सहारा ले सकते हैं। चंडीगढ़ से बिलासपुर तक की दूरी लगभग 110 किलोमीटर है, जिसे सड़क मार्ग द्वारा 3-4 घंटे में तय किया जा सकता है।
कोलडैम बांध तक पहुँचने का सबसे आसान तरीका सड़क मार्ग है। आप चंडीगढ़ या शिमला से बिलासपुर तक सड़क मार्ग से पहुँच सकते हैं। चंडीगढ़ से बिलासपुर की दूरी लगभग 110 किलोमीटर है और शिमला से बिलासपुर की दूरी लगभग 90 किलोमीटर है। दोनों ही मार्गों पर आपको सुंदर पहाड़ी दृश्य और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने का मौका मिलेगा।
बिलासपुर से कोलडैम बांध की दूरी लगभग 25 किलोमीटर है, जिसे आप स्थानीय बस, टैक्सी या ऑटो रिक्शा के माध्यम से आसानी से तय कर सकते हैं। स्थानीय परिवहन की सुविधा यहां अच्छी है और आप आराम से बांध तक पहुँच सकते हैं।

9.बच्छरेतू किला, बिलासपुर( Bachhretu Fort, Bilaspur)

परिचय: हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थित बच्छरेतू किला (Fort Bachhretu) ऐतिहासिक धरोहर और प्राकृतिक सुंदरता का एक अनूठा संगम है। यह किला शाही परंपराओं और वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है, जो सदियों पुराने इतिहास को अपने अंदर समेटे हुए है। समुद्र तल से लगभग 3,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। बच्छरेतू किला 14वीं शताब्दी में राजा वीरचंद द्वारा बनवाया गया था। यह किला अपनी रणनीतिक स्थिति के कारण महत्वपूर्ण था और इसका उपयोग दुश्मनों पर नजर रखने और क्षेत्र की सुरक्षा के लिए किया जाता था।
क्यों जाएं- बच्छरेतू किले की वास्तुकला अद्वितीय है। किले की दीवारें पत्थरों से बनी हैं, जो आज भी अपने मूल रूप में खड़ी हैं। किले के अंदर कुछ संरचनाएँ और मीनारें हैं, जो उस समय की शिल्पकला और निर्माण तकनीकों को दर्शाती हैं। किले के प्रवेश द्वार और खिड़कियों से आप आसपास की घाटियों और पहाड़ियों का अद्भुत दृश्य देख सकते हैं। किले के चारों ओर हरे-भरे जंगल, दूर-दूर तक फैली हुई घाटियाँ है।
बच्छरेतू किला तक पहुँचने के लिए एक छोटा ट्रेक भी करना पड़ता है। ट्रेकिंग के दौरान आप जंगल के बीच से गुजरते हुए किले तक पहुँचते हैं। बच्छरेतू किला और इसके आसपास का क्षेत्र फोटोग्राफी के लिए अच्छा स्थान है।
कब जाएं- बच्छरेतू किला सालभर में कभी भी जाया जा सकता है, लेकिन यहाँ का दौरा करने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच है। इस समय मौसम ठंडा और सुहावना रहता है। गर्मी के मौसम में सुबह और शाम के समय में किले का दौरा करना बेहतर होता है।मानसून के दौरान, बच्छरेतू किला और इसके आसपास का क्षेत्र हरियाली से भर जाता है। बारिश के बाद किले का दृश्य और भी आकर्षक हो जाता है। हालांकि, इस मौसम में ट्रेकिंग करते समय सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि रास्ते फिसलन भरे हो सकते हैं।
कैसे जाएं-बच्छरेतू किला बिलासपुर जिले में स्थित है और यहाँ तक पहुँचने के लिए कई विकल्प उपलब्ध हैं। यहाँ से सबसे नजदीकी हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन चंडीगढ़ है, जो बच्छरेतू किला से लगभग 140 किलोमीटर की दूरी पर है। चंडीगढ़ से बिलासपुर के लिए टैक्सी या बस मिलता हैं, जो लगभग 3-4 घंटे का समय लेता है। बच्छरेतू किला सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। चंडीगढ़, शिमला या धर्मशाला से बिलासपुर तक सड़क मार्ग से पहुँच सकते हैं। बिलासपुर से बच्छरेतू किला लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जो स्थानीय टैक्सी, बस या अपनी गाड़ी से आसानी से तय किया जा सकता है। किले तक पहुँचने के लिए अंतिम कुछ किलोमीटर का सफर आपको पैदल तय करना होता है।

10.बंदला हिल ट्रेक, बिलासपुर( Bandla Hill Trek, Bilaspur)

परिचय: हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थित बंदला हिल ट्रेक (Bandla Hill Trek) एक ऐसा स्थल है जो प्रकृति प्रेमियों, एडवेंचर उत्साही और ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए बेहद आकर्षक है। 
क्यों जाएं- बंदला हिल्स समुद्र तल से लगभग 6,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है जहां से गोविंद सागर झील, सतलुज नदी और बिलासपुर शहर का खूबसूरत नजारा देख सकते है। साथ ही साथ हरे-भरे जंगल, साफ हवा और शांत वातावरण ठंडी हवाओ का भी आनद ले सकते है। हिल पर चढाई के दौरान, पहाड़ी रास्तों, घने जंगलों और चट्टानों से होकर गुजरना पड़ता है,जहा से फोटोग्राफी करते हुए ट्रैकिंग का आनद लिया जा सकता है।
कब जाएं- बंदला हिल ट्रेक के लिए सबसे अच्छा समय मार्च से जून और फिर सितंबर से नवंबर तक का है। इन महीनों में मौसम सुहावना रहता है और ट्रेकिंग के लिए उपयुक्त होता है।
कैसे जाएं-बंदला हिल ट्रेक बिलासपुर जिले में स्थित हैं। यहाँ से सबसे नजदीकी हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन चंडीगढ़ है, जो बंदला हिल ट्रेक से लगभग 130 किलोमीटर की दूरी पर है। चंडीगढ़ से बिलासपुर के लिए टैक्सी या बस मिलता हैं, चंडीगढ़, शिमला या धर्मशाला से बिलासपुर तक सड़क मार्ग से पहुँच सकते हैं। बिलासपुर से बंदला हिल ट्रेक लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जो स्थानीय टैक्सी, बस या अपनी गाड़ी से जा सकता है।
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